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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


उन्माद (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद


क्रोधावेश के कारण वह कांप उठी। फिर रोते हुये बोली-इस दगाबाजी का मैं इसे मजा चखाऊंगी। ओह! इसने मेरा कितना घोर अपमान किया है। ऐसा विश्वास घात करने वाले को जओ दण्ड दिया जाय वह थोड़ा है। इसने कैसी मीठी-मीठी बातें करके मुझे फ़ांसा। मैने ही इसे जगह दिलायी, मेरे ही प्रयत्नों से यह बड़ा आदमी बना। इसके लिये मैने अपना घर छोड़ा, अपना देश छोड़ा और इसने मेरे साथ ऐसा कपट किया।
जेनी सिर पर हांथ रखकर बैठ गयी। फिर तैश में उठी और मनहर के पास जाकर उसको अपनी ओर खींचती हुयी बोली-मैं तुम्हे खराब करके छोड़ूंगी। तूने मुझे समझा क्या है_
मनहर इस तरह शान्त भाव से खड़ा र्हा, मानो उससे उसे कोई प्रयोजन ही नहीं है।
फिर वह सिंहनी की भांति मनहर पर टूट पड़ी और उसे जमीन पर गिराकर उसकी छाती पर चढ़ बैठी। वागेश्वरी ने उसका हांथ पकड़कर अलग कर दिया।और बोली-तुम ऐसी डायन न होती, तो उनकी यह दशा क्यों होती?
जेनी ने तैश में आकर जेब से पिस्तौल निकाली और वागेश्वरी की तरफ़ बढ़ी। सहसा मनहर तड़पकर उठा, उसके हांथ से भरा हुआ पिस्तौल छीनकर फ़ेंक दिया और वागेश्वरी के सामने खड़ा हो गया। फिर ऐसा मुंह बना लिया मानो कुछ हुआ ही नही हो।
उसी वक्त मनहर की माताजी दोपहरी की नींद सोकर उठीं और जेनी को देखकर वागेश्वरी की ओर प्रश्न भरी आंखो से ताका।
वागेश्वरी ने उपहास भाव से कहा-यह आपकी बहू है।
बुढ़िया ठिनककर बोली-कैसी मेरी बहू? यह मेरी बहू बनने जोग है बंदरिया?
लड़के पर न जाने क्या कर करा दिया, अब छाती पर मूंग दलने आयी है?
जेनी एक क्षण तक मनहर को खून भरी आंखो से देखती रही। फिर बिजली की भांति कौंधकर उसने आंगन में पड़ा पिस्तौल उठा लिया और वागेश्वरी पर छोड़ना ही चाहती थी कि मनहर सामने आ गया। वह बेधड़क जेनी के सामने चला गया। उसके हांथ से पिस्तौल छीन लिया और अपनी छाती में गोली मार ली।



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